Wednesday, October 7, 2009

"जीवन और मृत्यु"

प्रत्येक व्यक्ति का तर्क इस विषय पर विभिन्न होगा। मुझसे यदि कोई इस विषय पर पूछे तो मेरा जवाब इस प्रकार होगा।
जीवन और मृत्यु सिक्के के दो पहलू है। हर एक को जो सजीव है उसे इन दोनों पहलुओं का सामना करना पड़ता है। जब भी कोई जीव इस संसार में कदम रखता है तो उसे सबसे पहले जिन्दगी के हर अनुभव से गुजरना पड़ता है साथ ही साथ वह प्रत्येक पल मौत के निकट आता रहता है इसलिए प्रत्येक क्षण उसके लिए किमती होता है। इन प्रत्येक अनमोल क्षण का उपयोग वह किस तरह करता है यह उसके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। भारतीय व अन्य पुराणों में आत्मा का जिक्र किया जाता है उनके अनुसार जब आत्मा शरीर में प्रवेश करती है तो जीव जीवन प्रारम्भ करता है किंतु आत्मा के शरीर से पलायन करने के बाद जीव मृत्यु को प्राप्त होता अतः आत्मा अमर है।

जिस तरह एक शरीर का संचालन सभी अंग प्रत्यंग मिलकर करते हैं। शरीर के सारे अंग कार्यों को आपस में बाँट लेते हैं छोटी सी छोटी कोशिकाएं अपना निर्धारित कार्य समयानुसार करती है ठीक इसी तरह इस संसार के प्रत्येक जीव का कार्य निर्धारित होता है।

जरुरत है तो मानव को समझने की कि उसमें कौन सी प्रतिभा छुपी हुई है और उसका सही तरीके से उपयोग किस प्रकार किया जाए। यदि शरीर का कोई अंग अपना कार्य नहीं करता तो शरीर बीमार हो जाता है उसी प्रकार यदि एक भी व्यक्ति अपना कार्य नहीं करता तो संसार बीमार हो जाती है कार्यों का तालमेल ठीक ना होने से प्रकृति को नुकसान होता है।

एक व्यक्ति के कार्य ठीक से न करने पर उसका परिवार अशांत रहता है। उस परिवार के कारण समाज और समाज के कारण राज्य ,इस राज्य के कारण देश और सिर्फ़ एक देश से संसार की हर प्रकार की व्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है चाहे वह छोटा हो या बड़ा हो।

जिस तरह योग व साधना से शरीर को स्वस्थ रखा जाता है ठीक उसी तरह अनुशासन और एकता से मनुष्य अपनी स्वस्थ जिन्दगी जी सकता है।

जीवन में सुख और दुःख के पहलु भी समावेशित होते हैं। मनुष्य जिस तरह सुख को आसानी से ग्रहण कर लेता है ठीक उसी तरह उसे दुःख को भी ग्रहण करना चाहिए तभी तो वह सुख के आनंद को समझ पायेगा। यदि कोई मनुष्य लगातार सफल होता रहता है तो उसे उतनी खुशी नहीं होगी जितनी की एक असफल मनुष्य को सफल होने में।
हम ईश्वर के हाथ की मात्र कठपुतलियाँ है ऐसी कठपुतलियाँ जो की प्रकृति के पञ्च तत्वों से मिलकर बनी है जल, अग्नि , पृथ्वी, वायु , और आकाश। इसलिए प्रत्येक जीव को गीता के उपदेश के अनुसार कर्म करना चाहिए बगैर फल के चिंता किए। यदि हम परिणाम की चिंता करेंगे तो निश्चित तौर पर ऋणात्मक भी ले सकते हैं जो हमें कार्य बगैर कराये ही पराजित कर देता है और यदि धनात्मक लिया जाए तो (हम तो अवश्य ही जीतेंगे ऐसा सोचकर) भी हमारे कार्य क्षमता पर प्रभाव पड़ेगा हममें अतिआत्मविश्वास आ जाएगा जो हमें पराजय की ओर ले जाएगा। अतः हमें अपने योग्यतानुसार कर्म करना चाहिए उससे हमें जो भी परिणाम मिलेगा हम संतुष्ट रहेंगे। जीवन के हर एक क्षण का आनंद लेना चाहिए उसे गँवाना नहीं चाहिए। जीवन के आखरी क्षणों में जब मनुष्य मृत्यु के निकट पहुँच जाता है वह अत्यन्त अनमोल होता है। उन क्षणों में वह अत्यन्त कष्ट पता है शायद उसे लगता होगा कि उसे हजारों सुईयां चुभोई जा रही है। उन पलों को उसे अत्यंत सहजता के साथ लेना चाहिए ।"

कोई विद्यार्थी जब परीक्षा देने जाता है तो उसे भय लगता है। अगर उसने कड़ी मेहनत की है तो उसे भय जरा सा लगता है या कह सकतें है नहीं लगता क्योंकि उसने परीक्षा जिस विषय की है उसका पूरी लगन से अध्ययन किया है। उसी प्रकार मौत विषय पर भगवान/ईश्वर/अल्लाह हमारी परीक्षा लेते हैं "जीवन के बाद" की सबसे बड़ी परीक्षा यदि इस विषय का सम्पूर्ण ज्ञान प्राणी को होगा तो उसे इसका जरा भी भय नहीं होगा।
इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए हमें बहार भटकने की जरुरत नहीं , हमें अपनी सभी इन्द्रियों पर काबू पाते हुए साधना करना पड़ेगा। मस्तिष्क के सुप्त भाग को जगाना होगा यदि वो एक बार जागृत हो गई तो सारे ब्रह्माण्ड के रहस्य को हम जान सकेंगे। लेकिन आज का आधुनिक मानव इन सब बातों पर ध्यान न देकर भौतिक चीजों पर ध्यान देता हैजिससे वह सांसारिक धागे में फंसता ही चले जाता है और वह आध्यात्मिकता से काफी दूर हो मृगतृष्णा व मायाजाल में फंसा रहता है।
असली मोती या नकली मोती में उसे फर्क करना नहीं आता। असली मोती प्राप्त करने में बहुत संघर्ष लगता है तो वह नकली को असली समझ कर खुश रहता है किंतु असली मोती तो असली होती है इस सच्चे मोती प्राप्त करने वाले लोगों से पूछो कि उन्हें कितनी खुशी होती है। उसी तरह सच्ची खुशी सुप्त मस्तिष्क को जागृत करने पर मिलती है वह संसार कि सारी खुशियों के आगे तुच्छ है।
ये खुशियाँ निरंतर बढ़ती जाती है जब प्राप्त ज्ञान को संसार में बाँट कर अंधेरे को दूर भगाते हैं। ज्ञान रूपी प्रकाश से अज्ञान रूपी अंधेरे को हटाकर आप ईश्वर के कार्यों में हाथ बँटाते हैं इससे सुखद कार्य क्या होगा कि आप उस मालिक के अधीन है जिससे बड़ा मालिक और कोई नही। वेतन में खुशियाँ मिलेंगी। जितना अच्छा काम उतना पगार खुशियों के रूप में बढ़ता जाता है। बोनस में आपको आत्मसंतोष मिलता है और पदोन्नति के रूप में आप की आत्मा ईश्वर अर्थात परमात्मा में समा जाती है।
इस प्रकार एक महान आत्मा का लक्ष्य पूरा होता है।
"मृत्यु क्या है? मृत्यु क्यों होती है? मृत्यु के पश्चात् हमारी आत्मा (अगर होती है) कैसी जीवन गुजारती है ? या किस अवस्था में होती है? मृत्यु के पश्चात् तो हमें कोई दर्द नहीं होता कोई भावनाएं व कोई बंधन नहीं होता फ़िर हमें मृत्यु नाम से भय क्यों लगता है?
इन सब का उत्तर हमें कौन दे सकता है?
इन सब प्रश्नों को लेकर मैं बेहद असमंजस में थी।
समय गुजरता गया.........