Monday, November 23, 2009

वर्तमान जीवन शैली का विश्लेषण

३०० साल पहले का इतिहास देखने पर आप पायेंगे कि इस समय प्रकृति को पहुँचने वाला नुकसान कम है....... क्यों?
पहले पूरी धरती के लोग एक धार्मिक छत्र छाया के अंतर्गत चलते थे चाहे शंकाराचार्य हो , चाहे पोप ....... हमारे यहाँ तो उस समय जल भी देवता और सूर्य भी देवता थे..... इस मान्यता में जीने के कारण उस समय प्रकृति को होने वाला नुकसान कम था।

पर अब क्या दिखाई दे रहा है? ग्लोबल वार्मिंग, औद्योगिक प्रदुषण ....हर जगह हर तरफ़ जिधर देखो प्रकृति को भारी नुकसान पहुँचाया जा रहा है। यह सब प्रदुषण हमारे पिछले कुछ सालों की कमाई है।

यहाँ पर आपकी ओर एक प्रश्न उठ सकता है कि जनसँख्या इतनी तेजी से बढ़ रही है उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति कहाँ से होगी? इसके लिए प्रकृति के साथ छेड़खानी ज़रूरी है।


हमें अपने जिन्दगी को चलाने के लिए क्या चाहिए?
यह जानने के लिए चलिए यह diagram देखते हैं।



  • सबसे पहले प्राण अवस्था अर्थात पौधों को जीने के लिए क्या चाहिए?

"पदार्थ" जो की भरपूर मात्रा में उपलब्ध है तो यहाँ पेड़ पौधों को कोई तकलीफ नहीं जीने में।

  • अब देखते हैं जीव अवस्था , इन्हें जीने के लिए चाहिए "पदार्थ और पेड़ पौधे "जो कि अनुपात में काफी मात्रा में उपलब्ध है तो यहाँ भी कोई समस्या नहीं।
  • और मानव को क्या चाहिए "पदार्थ, पेड़-पौधे और जीव " ये तीनों ही अनुपात में अत्यधिक है जिससे वह आराम से जी सकता है।
    फ़िर यह प्रश्न "कि मानव को जीने के लिए प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करनी ही पड़ेगी ?" कहाँ से आया?

चलिए इस समस्या की जड़ तक पहुँचने की कोशिश करते हैं।
पिछले ५० सालों में Formal Education (औपचारिक शिक्षा ) बहुत बढ़ी है।
जिसके बढ़ने के साथ प्रकृति के साथ मानव का और मानव का मानव के साथ सम्बन्ध हमें गंभीर चिंतन की ओर ले जाते हैं।

माँ-बाप अपने बच्चे को क्या यह सोचकर पढ़ाते लिखाते हैं कि बेटा पढ़ लिखकर हमारा सम्मान नहीं करेगा ?
नहीं ना?
एक शिक्षित व्यक्ति से हमें समझदार होने की कामना है ही।

शिक्षित और समझदार व्यक्ति कौन ?

(क्रमश:)

1 comment:

Creative Manch said...

चिंतन के द्वार खोलती पठनीय पोस्ट !

आखिर कब चेतेगा मानव ?


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